जयपुर. गोबर के दीए से इस बार घर-आंगन रोशन करने की तैयारी है। पर्यावरण संरक्षण और महिला स्वयं सहायता समूहों को रोजगार मुहैया कराने की दिशा में गोबर से बने दीए को अहम माना जा रहा है। रंग-बिरंगे गोबर के ये दीए पहली बार बाजार में आए हैं। राजस्थान की राजधानी जयपुर सहित बीकानेर, भीलवाड़ा, श्रीडूंगरगंढ़ शहरों की विभिन्न गोशालाओं में गाय के गोबर से दीपक बनाने का कार्य तेजी से हो रही है।
जयपुर में श्रीपिंजरापोल गोशाला स्थित सनराइजऑर्गेनिक पार्क में गाय के गोबर से दीपक बनाने के लिए हैनिमैनचैरिटेबल मिशन सोसाइटी से जुड़ी महिलाओं ने इस दिशा में अभिनव पहल की है। कुछ समय पहले तक यहां पर दर्जनों महिलाएं ऑर्गेनिक पार्क की औषधीय खेती करती थीं। इन्हीं महिलाओं ने गाय के गोबर को अपनी आर्थिक और सामाजिक स्थिति मजबूत करने का जरिया बना लिया है। ये महिलाएं आकर्षक दीए बनाने के साथ-साथ लक्ष्मी जी व गणेश जी की मूर्ति सहित कई तरह की कलात्मक चीजें भी बना रही हैं। इकोफ्रेंडली होने के चलते राज्य के अन्य शहरों और अन्य राज्यों से भी इसकी मांग आ रही है। इसके अलावा यहां महिलाएं बचे हुए गोबर चूर्ण और पत्तियों से ऑर्गेनिक खाद (वर्मीकम्पोस्ट) भी बना रही हैं।
ऐसे बनाये जा रहे है दीपक-
दीपक बनाने के लिए पहले गाय के गोबर को इक_ा किया जाता है। उसके बाद करीब ढाई किलो गोबर के पाउडर में एक किलो प्रीमिक्स व गोंद मिलाते हैं। गीली मिट्टी की तरह छानने के बाद इसे हाथ से उसको गूंथा जाता है। शुद्धि के लिए इनमें जटा मासी, पीली सरसों, विशेष वृक्ष की छाल, एलोवेरा, मेथी के बीज, इमली के बीज आदि को मिलाया जाता है। इसमें 40प्रतिशत ताजा गोबर और 60प्रतिशत सूखा गोबर इस्तेमाल किया जाता है। इसके बाद गाय के गोबर के दीपक का खूबसूरत आकार दिया जाता है। एक मिनट में चार दीये तैयार हो जाते हैं। इसे दो दिनों तक धूप में सुखाने के बाद अलग-अलग रंगों से सजाया जाता है। प्रतिदिन 20 महिलाएं 5000 हजार दीपक बना रही हैं। इन प्रत्येक महिला को प्रतिदिन 350 रुपए मिल रहे हैं।
हैनिमैनचैरिटेबल मिशन सोसाइटी की अध्यक्ष मोनिका गुप्ता ने बताया कि शास्त्रों के मुताबिक गौमाता के गोबर में लक्ष्मी जी का वास है। इसलिए हमारा लक्ष्य 25000 दीये बनाने का है ताकि लोग गाय के गोबर के महत्व को जानें। उन्होंने बताया कि अब तक जयपुर सहित तेलंगाना, गुजरात, दिल्ली व हरियाणा से गाय के गोबर से निर्मित दीयों की डिमांड लगातार बढ़ रही है। होलसेल में 250 रुपए प्रति सैंकड़ा के हिसाब से दीपक बिक रहे हैं। डिमांड के अनुसार आपूर्ति नहीं हो पा रही है। इतना नहीं इसके साथ-साथ गणेश और लक्ष्मी माता की मूर्ति भी इकोफ्रेंडली बनाई जा रही है।
त्योहार हमारा, लेकिन सामान चायनीज
सनराइजएग्रीलैंडडवलपमेंट एंड रिसर्चप्रा.लि. की मार्केटिंग हैडसंगीतागौड़ ने बताया कि चीन किस तरह मार्केट को पकड़ता है इसका अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि चीन जिन त्योहारों को मानता ही नहीं है वह उसे मनाने के लिए सामान बनाता है। होली चीन में नहीं खेली जाती लेकिन उसकी पिचकारी चीन से बनकर आती है। चीन दीपावली नहीं मनाता लेकिन हमारे घरों को रोशन करने वाली लाइटें चीन से बनकर आती हैं। लेकिन अब यह तस्वीर बदल रही है। भारत ने यह ठान लिया है कि जब पर्व भारतीय हैं तो उसकी कमाई कोई और क्यों ले जाए। कुछ इसी तर्ज पर सैकड़ों महिलाओं ने इस बार दीपावली पर जलने वाले दीपक चायनीज नहीं बल्कि गाय के गोबर से बनाकर आमजन को उपलब्ध कराने का जिम्मा संभाला है।
दीये के अपशेष भी बेहद उपयोगी
इस दीपक के जलने से घर में हवन की खुशबू महकेगी। जिससे घर के वातावरण को पटाखों की गैस को कम करने में सहायक होगी। दीये को दीपावली में उपयोग करने के बाद जैविक खाद बनाने उपयोग में लाया जा सकता है। दीये के अवशेष को गमला या कीचनगार्डन में भी उपयोग किया जा सकता है। इस तरह मिट्टी के दीये बनाने और पकाने में पर्यावरण को होने वाले नुकसान के स्थान पर गोबर को दीए को इकोफ्रेंडली माना जाता है। उन्होंने सनातन धर्मियों से गाय के गोबर से बने दीपक जलाने का आह्वान किया है।
This Diwali, you can try a different kind of diya, besides the traditional earthen lamps. You can try out designer diyas made of cow dung, decorated without any harmful colour or adornments-
A group of women, who work in a cowshed in Rajasthan, have come forward to prepare diyas with cow dung, which is not just eco-friendly, but will also "promote Prime Minister Narendra Modi's Vocal for Local initiative".
"Cow dung is believed to be pure in our tradition. Over 100 women are making 1,000 pieces of diyas each day," Sangita Guar, a worker in the cow shelter, told ANI. "We feel happy about using local products to celebrate our festivals," Pinki, another worker, said.
India is dependent on China for products like these to celebrate "our festivals".
"So we have taken this initiative to produce organic earthen lamps, where thousands of women could be employed in the state. It will bring an alternate source of income to the cowsheds as well. It is eco-friendly and promotes the vision of "Vocal for Local" as well," he added. (ANI)